कमर की नस दबने पर कौन से योगासन करें? || ये योगासन आपको बहुत आराम देंगे :

नमस्कार दोस्तों ,जैसा की आप सभी लोग जानते हैं ,जैसे की बढ़ते समय के साथ ही कमर की नस दबने पर कौन से योगासन करना चाहिए। यह समस्या अक्सर तर बढ़ती जा रही है,तो कमर की नस दबने पर कौन से योगासन करें? – एक संपूर्ण गाइड तो आज मै इस आर्टिकल के जारिए से कुछ जानकारियाँ देना चाहता हूँ। जैसे की कमर की नस दबना एक बड़ी समस्या है। तो जानते हैं  इन समस्याओं से कैसे लड़ना है?

कमर की नस दबना, जिसे आमतौर पर साइटिका (Sciatica) के नाम से जाना जाता है, एक ऐसी समस्या है जो लाखों लोगों को प्रभावित करती है। यह दर्दनाक स्थिति तब होती है जब रीढ़ की हड्डी से निकलने वाली साइटिक नर्व पर दबाव पड़ता है, जिसके परिणाम स्वरूप कमर से लेकर पैरों तक तेज दर्द, झनझनाहट, या सुन्नता महसूस होती है। इस समस्या का कारण गलत पॉस्चर, भारी वजन उठाना, या लंबे समय तक एक ही स्थिति में बैठना हो सकता है।

योग इस समस्या के लिए एक प्राकृतिक और प्रभावी उपाय है। यह न केवल नसों पर दबाव को कम करता है, बल्कि रीढ़ की हड्डी को लचीला और मांसपेशियों को मजबूत भी बनाता है। हम विस्तार से जानेंगे कि कमर की नस दबने पर कौन से योगासन करें, इनके लाभ, सावधानियां, और इस समस्या से बचाव के उपाय। 

कमर की नस दबने के लक्षण

 कमर की नस दबने को मेडिकल भाषा में “साइएटिका” (Sciatica) कहा जाता है। यह तब होता है जब रीढ़ की हड्डी (स्पाइन) से निकलने वाली नसों पर दबाव पड़ता है, विशेष रूप से सायटिक नर्व पर। इसके लक्षण धीरे-धीरे शुरू हो सकते हैं और समय के साथ गंभीर हो सकते हैं। सबसे सामान्य लक्षणों में से एक है – कमर के निचले हिस्से से लेकर नितंब, जांघ, और कभी-कभी पंजों तक में तेज या जलन जैसी दर्द का अनुभव होना। यह दर्द एक पैर में ज्यादा महसूस हो सकता है और खड़े होने, चलने या बैठने से बढ़ सकता है।

इसके अलावा मरीज को झुनझुनी (tingling), सुन्नपन (numbness), या मांसपेशियों में कमजोरी की शिकायत हो सकती है। कई बार ऐसा महसूस होता है जैसे पैरों में बिजली सी दौड़ रही हो। अगर नस लंबे समय तक दबी रही तो चलने-फिरने में कठिनाई, मांसपेशियों का सिकुड़ना और मूवमेंट का कम होना भी संभव है। ऐसे लक्षण दिखने पर जल्द से जल्द डॉक्टर से परामर्श लेना चाहिए ताकि सही इलाज शुरू किया जा सके।

  1. कमर से पैर तक दर्द: विशेष रूप से एक पैर में तेज या जलन जैसा दर्द।
  2. झनझनाहट या सुन्नता: पैरों या तलवों में सुई चुभने जैसी अनुभूति।
  3. बैठने पर दर्द बढ़ना: लंबे समय तक बैठने से दर्द और असहजता बढ़ती है।
  4. चलने या खड़े होने में कठिनाई: गति सीमित हो सकती है।
  5. मांसपेशियों में कमजोरी: पैरों में कमजोरी या भारीपन महसूस होना।

नस दबने के प्रमुख कारण

कमर की नस दबने के कई कारण हो सकते हैं, जिनमें शामिल हैं:

  1. स्लिप डिस्क: रीढ़ की हड्डी की डिस्क का खिसकना, जो नसों पर दबाव डालता है।
  2. मांसपेशियों की अकड़न: लंबे समय तक गलत तरीके से बैठने या खड़े होने से।
  3. मोटापा: अधिक वजन नसों पर अतिरिक्त दबाव डालता है।
  4. उम्र का प्रभाव: उम्र बढ़ने के साथ हड्डियां और डिस्क कमजोर हो सकती हैं।
  5. जीवनशैली की समस्याएं: जैसे कि गतिहीन जीवनशैली या भारी वजन उठाना।
  6. चोट या झटका: अचानक झटके या चोट से नस दब सकती है।

कमर की नस दबने पर योग के फायदे

योग न केवल शारीरिक, बल्कि मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी लाभकारी है। कमर की नस दबने की स्थिति में योग के निम्नलिखित फायदे हैं:

  1. रीढ़ की लचीलापन बढ़ाता है: योग रीढ़ की हड्डी को मजबूत और लचीला बनाता है।
  2. दबाव कम करता है: नसों पर दबाव को कम करने में मदद करता है।
  3. मांसपेशियों को मजबूती देता है: पीठ और पैरों की मांसपेशियों को ताकत देता है।
  4. रक्त संचार बढ़ाता है: बेहतर रक्त प्रवाह से दर्द और सूजन कम होती है।
  5. तनाव कम करता है: योग मानसिक शांति देता है, जो दर्द प्रबंधन में सहायक है।

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कमर की नस दबने पर करने योग्य योगासन

नीचे कुछ ऐसे योगासन दिए गए हैं जो साइटिका और कमर की नस दबने की समस्या में राहत प्रदान करते हैं। इन्हें नियमित रूप से और सही तरीके से करने पर सर्वोत्तम परिणाम मिलते हैं।

1. भुजंगासन (Cobra Pose)

भुजंगासन, जिसे अंग्रेज़ी में Cobra Pose कहा जाता है, योग का एक महत्वपूर्ण आसन है जो रीढ़ की हड्डी को लचीलापन देने और शरीर में ऊर्जा का संचार करने में मदद करता है। यह आसन विशेष रूप से पीठ, कंधे और छाती की मांसपेशियों को मजबूत बनाता है। इस आसन में व्यक्ति अपने पेट के बल लेटता है और हाथों की सहायता से शरीर के ऊपरी हिस्से को ऊपर उठाता है, जिससे शरीर का आकार एक फन फैलाए हुए नाग की तरह दिखता है। यही कारण है कि इसे “भुजंग” यानी “सांप” नाम दिया गया है।

भुजंगासन ना केवल कमर दर्द में राहत देता है, बल्कि यह शरीर की मुद्रा (posture) सुधारने में भी लाभकारी होता है। यह पाचन तंत्र को मजबूत करता है, थकान को दूर करता है और तनाव को कम करने में भी सहायक होता है। नियमित अभ्यास से यह आसन पीठ की मांसपेशियों को मजबूती देता है और मेरुदंड को सक्रिय बनाता है, जिससे मानसिक और शारीरिक संतुलन बेहतर होता है।

लाभ: यह आसन रीढ़ की हड्डी को लचीला बनाता है और साइटिक नर्व पर दबाव को कम करता है। यह पीठ के निचले हिस्से को मजबूत करने में भी मदद करता है।

कैसे करें:

  1. पेट के बल लेट जाएं और हथेलियों को कंधों के नीचे रखें।
  2. धीरे-धीरे छाती को ऊपर उठाएं, सिर को पीछे की ओर झुकाएं।
  3. कोहनी थोड़ी मुड़ी रहें और कंधों को कानों से दूर रखें।
  4. 15-20 सेकंड तक इस स्थिति में रहें और गहरी सांस लें।
  5. धीरे-धीरे प्रारंभिक स्थिति में वापस आएं।

सावधानी: यदि दर्द बढ़े, तो तुरंत रुकें।

2. सेतु बंधासन (Bridge Pose)

सेतु बंधासन, जिसे अंग्रेज़ी में Bridge Pose कहा जाता है, एक महत्वपूर्ण योग आसन है जो रीढ़ की हड्डी को लचीलापन देने, पीठ दर्द कम करने और मानसिक तनाव से राहत पाने में मदद करता है। “सेतु” का अर्थ होता है “पुल” और “बंध” का अर्थ होता है “बंधना”, इसलिए यह आसन शरीर को एक पुल की तरह आकार देता है। इसे करने के लिए पीठ के बल लेटकर घुटनों को मोड़ा जाता है और कूल्हों को ऊपर उठाकर शरीर को एक पुल के आकार में रखा जाता है।

इस आसन के अभ्यास से छाती, गर्दन और रीढ़ की मांसपेशियाँ मजबूत होती हैं। यह आसन थायरॉइड ग्रंथि को सक्रिय करता है और पाचन तंत्र को भी बेहतर बनाता है। साथ ही यह चिंता, अवसाद और थकान को कम करने में सहायक है। सेतु बंधासन को नियमित रूप से करने से पीठ और कूल्हों में लचीलापन बढ़ता है और यह महिलाओं के मासिक धर्म संबंधी कष्टों में भी राहत दिलाने में उपयोगी माना गया है।

लाभ: यह आसन पीठ के निचले हिस्से को मजबूत करता है और साइटिका दर्द को कम करता है।

कैसे करें:

  1. पीठ के बल लेट जाएं और घुटनों को मोड़ें।
  2. पैरों को कूल्हों की चौड़ाई जितना अलग रखें।
  3. हथेलियों को शरीर के बगल में रखें।
  4. धीरे-धीरे कूल्हों और कमर को ऊपर उठाएं।
  5. 20-30 सेकंड तक होल्ड करें और सामान्य सांस लें।
  6. धीरे-धीरे नीचे आएं।

सावधानी: कूल्हों को ज्यादा ऊपर न उठाएं।

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3. शलभासन (Locust Pose)

शलभासन, जिसे अंग्रेज़ी में Locust Pose कहा जाता है, योग का एक महत्वपूर्ण आसन है जो मुख्यतः पीठ, रीढ़, कमर और पेट की मांसपेशियों को मजबूत करने में मदद करता है। संस्कृत में “शलभ” का अर्थ होता है “टिड्डा” और इस आसन में शरीर की आकृति टिड्डे जैसी प्रतीत होती है, इसलिए इसे शलभासन कहा गया है। यह आसन विशेष रूप से उन लोगों के लिए लाभकारी होता है जो लंबे समय तक बैठकर काम करते हैं और जिनकी पीठ कमजोर हो जाती है।

शलभासन करते समय व्यक्ति पेट के बल लेटता है और धीरे-धीरे दोनों पैर, छाती और हाथों को ज़मीन से ऊपर उठाता है। यह प्रक्रिया कमर के निचले हिस्से पर तनाव डालती है जिससे रीढ़ की हड्डी को मजबूती मिलती है और लचीलापन बढ़ता है। यह आसन गैस, कब्ज़ और पाचन की समस्याओं को दूर करने में भी सहायक है। नियमित अभ्यास से यह न केवल शरीर को संतुलित और मजबूत बनाता है बल्कि मानसिक रूप से भी एकाग्रता में वृद्धि करता है।

लाभ: यह रीढ़ की हड्डी और नितंबों को मजबूत करता है, जिससे नसों पर दबाव कम होता है।

कैसे करें:

  1. पेट के बल लेट जाएं और हाथों को शरीर के बगल में रखें।
  2. सांस लेते हुए दोनों पैरों को एक साथ ऊपर उठाएं।
  3. छाती और सिर को भी थोड़ा ऊपर उठाएं।
  4. 15-20 सेकंड तक होल्ड करें और धीरे-धीरे नीचे आएं।

सावधानी: शुरुआत में इसे कम समय तक करें।

4. पवनमुक्तासन (Wind Releasing Pose)

योग का एक सरल लेकिन अत्यंत लाभकारी आसन है, जिसे विशेष रूप से पेट संबंधी समस्याओं जैसे गैस, कब्ज और अपच को दूर करने के लिए किया जाता है। संस्कृत में “पवन” का अर्थ है वायु (गैस) और “मुक्त” का अर्थ है मुक्त करना। यह आसन शरीर से अतिरिक्त गैस को बाहर निकालने में मदद करता है और पाचन तंत्र को सक्रिय बनाता है। इसे सुबह खाली पेट करना सबसे अधिक लाभकारी माना जाता है।

इस आसन को करते समय पीठ के बल लेटकर एक या दोनों पैरों को घुटनों से मोड़कर छाती की ओर लाया जाता है और हाथों से जकड़कर सिर को घुटनों से मिलाया जाता है। यह स्थिति पेट पर दबाव बनाती है जिससे पेट की मांसपेशियाँ और आंतें सक्रिय होती हैं। यह आसन पीठ दर्द को भी कम करता है, रीढ़ की हड्डी को लचीलापन देता है और मानसिक तनाव को दूर करने में मदद करता है। नियमित रूप से पवनमुक्तासन करने से शरीर हल्का और ऊर्जावान महसूस होता है।

लाभ: यह आसन पाचन को बेहतर करता है और कमर के निचले हिस्से में राहत देता है।

कैसे करें:

  1. पीठ के बल लेट जाएं।
  2. एक घुटने को मोड़कर छाती की ओर लाएं।
  3. दोनों हाथों से घुटने को पकड़ें और सिर को घुटने की ओर लाएं।
  4. 15-20 सेकंड तक होल्ड करें, फिर दूसरी टांग के साथ दोहराएं।

सावधानी: सिर को ज्यादा न झुकाएं।

5. मार्जरी-बिटलासन (Cat-Cow Pose)

मार्जरी-बिटलासन, जिसे अंग्रेज़ी में Cat-Cow Pose कहा जाता है, एक सरल लेकिन प्रभावशाली योग मुद्रा है जो रीढ़ की लचीलापन बढ़ाने, कमर दर्द को कम करने और मानसिक तनाव को घटाने में मदद करती है। यह आसन दो योग मुद्राओं—मार्जरी आसन (Cat Pose) और बिटलासन (Cow Pose)—का संयोजन है। सांस के साथ तालमेल बनाकर किया जाने वाला यह योगाभ्यास विशेष रूप से पीठ, गर्दन और कंधों को सक्रिय और लचीला बनाता है।

इस मुद्रा में पहले पीठ को गोल करके बिल्लीनुमा स्थिति (मार्जरी) बनाई जाती है और फिर पीठ को नीचे झुकाकर गाय जैसी मुद्रा (बिटलासन) बनाई जाती है। यह आसन विशेष रूप से ऑफिस में लंबे समय तक बैठने वालों, पीठ दर्द से परेशान लोगों और दिन भर थके हुए मन को शांत करने के लिए अत्यंत उपयोगी है। रोज़ाना केवल 5-10 मिनट इस योग को करने से शरीर में ऊर्जा का संचार होता है और रीढ़ मजबूत होती है।

लाभ: यह रीढ़ की हड्डी में लचीलापन लाता है और तनाव को कम करता है।

कैसे करें:

  1. हाथों और घुटनों के बल टेबल की तरह बैठें।
  2. सांस लेते हुए पीठ को नीचे की ओर झुकाएं (गाय मुद्रा)।
  3. सांस छोड़ते हुए पीठ को ऊपर की ओर गोल करें (बिल्ली मुद्रा)।
  4. इस क्रम को 8-10 बार दोहराएं।

सावधानी: गति धीमी और नियंत्रित रखें।

6. अर्धमत्स्येन्द्रासन (Half Spinal Twist)

अर्धमत्स्येन्द्रासन एक महत्वपूर्ण seated योग आसन है जो मेरुदंड (रीढ़ की हड्डी) को मोड़कर उसकी लचीलापन और ताकत को बढ़ाता है। यह आसन योगी मत्स्येन्द्रनाथ के नाम पर रखा गया है और इसे “हाफ स्पाइनल ट्विस्ट” भी कहा जाता है। इस आसन में शरीर को एक दिशा में मोड़कर बैठा जाता है, जिससे कमर, पीठ और कंधों की जकड़न दूर होती है और पाचन तंत्र को भी सक्रिय किया जाता है।

इस आसन के अभ्यास से रीढ़ की नसों में रक्त संचार सुधरता है, पाचन बेहतर होता है और किडनी व लीवर जैसे आंतरिक अंगों की कार्यक्षमता में वृद्धि होती है। अर्धमत्स्येन्द्रासन मानसिक रूप से भी लाभकारी है क्योंकि यह शरीर के तनाव को कम करता है और संतुलन एवं स्थिरता प्रदान करता है। विशेषकर लंबे समय तक बैठने वाले लोगों को यह आसन पीठ दर्द और थकान से राहत देने में मदद करता है।

लाभ: यह रीढ़ को लचीला बनाता है और नसों पर दबाव को कम करता है।

कैसे करें:

  1. सीधे बैठ जाएं और एक पैर को मोड़कर दूसरे पैर के घुटने के ऊपर रखें।
  2. विपरीत हाथ से घुटने को पकड़ें और धीरे-धीरे पीछे की ओर ट्विस्ट करें।
  3. 15-20 सेकंड तक होल्ड करें, फिर दूसरी ओर दोहराएं।

सावधानी: ट्विस्ट धीरे-धीरे करें।

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7. शवासन (Corpse Pose)

शवासन योग का एक अत्यंत महत्वपूर्ण और विश्रामदायक आसन है, जिसे अंग्रेज़ी में Corpse Pose कहा जाता है। यह आसन सामान्यतः योग अभ्यास के अंत में किया जाता है ताकि शरीर और मन को पूरी तरह से शांत किया जा सके। इसमें व्यक्ति पीठ के बल लेटकर शरीर को बिल्कुल ढीला छोड़ देता है, जैसे कि एक शव। इसका मुख्य उद्देश्य पूरे शरीर और मस्तिष्क को गहरी विश्रांति देना है।

शवासन दिखने में सरल लगता है, लेकिन मानसिक रूप से पूरी तरह सजग रहते हुए शरीर को शिथिल करना एक कला है। यह आसन तनाव, थकान, चिंता और रक्तचाप को कम करने में मदद करता है। शवासन से शरीर की ऊर्जा पुनः संचित होती है और ध्यान केंद्रित करने की क्षमता बढ़ती है। नियमित अभ्यास से यह नींद की गुणवत्ता सुधारता है और मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाता है।

लाभ: यह पूरे शरीर को आराम देता है और तनाव को कम करता है।

कैसे करें:

  1. पीठ के बल लेट जाएं।
  2. हाथ और पैरों को फैलाएं और हथेलियों को ऊपर की ओर रखें।
  3. आंखें बंद करें और गहरी सांस लें।
  4. 5-10 मिनट तक इस स्थिति में रहें।

सावधानी: शांत वातावरण में करें।

योग करते समय सावधानियां

योग करते समय कुछ बातों का ध्यान रखना जरूरी है ताकि कोई नुकसान न हो:

  1. दर्द होने पर रुकें: यदि किसी आसन से दर्द बढ़ता है, तो तुरंत रुकें।
  2. धीमी गति: सभी आसन धीरे और नियंत्रित तरीके से करें।
  3. विशेषज्ञ की सलाह: शुरुआत में योग प्रशिक्षक की निगरानी में करें।
  4. जबरदस्ती न करें: अपने शरीर की सीमा का सम्मान करें।
  5. हल्के आसन पहले: शुरुआत में हल्के और आसान आसनों से शुरू करें।

नस दबने से बचाव के घरेलू उपाय

योग के साथ-साथ कुछ घरेलू उपाय भी इस समस्या में राहत दे सकते हैं:

  1. गर्म सेंक: गर्म पानी की बोतल से कमर पर सेंक करें।
  2. हल्की स्ट्रेचिंग: रोजाना 10-15 मिनट स्ट्रेचिंग करें।
  3. सही पॉस्चर: बैठते समय पीठ सीधी रखें।
  4. नियमित व्यायाम: सुबह-शाम हल्की सैर करें।
  5. वजन नियंत्रण: मोटापे से बचें।

नसों को मजबूत करने वाला आहार

सही आहार नसों और हड्डियों को मजबूत करने में मदद करता है। निम्नलिखित तत्वों को अपने भोजन में शामिल करें:

तत्वस्रोत
कैल्शियमदूध, दही, पनीर, तिल
विटामिन बी12अंडा, मछली, दूध
मैग्नीशियमबादाम, केला, पालक
ओमेगा-3 फैटी एसिडअलसी, अखरोट, मछली
प्रोटीनदालें, चना, मूंगफली

प्राणायाम जो नसों को राहत दे

प्राणायाम नर्व सिस्टम को शांत करने और तनाव कम करने में सहायक है:

  1. अनुलोम-विलोम:
    • बारी-बारी से नासिकाओं से सांस लें और छोड़ें।
    • 5-10 मिनट तक करें।
    • यह नसों के तनाव को कम करता है।
  2. भ्रामरी प्राणायाम:
    • कानों को बंद करें और सांस लेते हुए गूंजन करें।
    • मानसिक शांति देता है।
  3. दीर्घ श्वास:
    • गहरी सांस लें और धीरे-धीरे छोड़ें।
    • तनाव और दर्द में राहत देता है।

इन गलतियों से बचें

कुछ गतिविधियां साइटिका दर्द को बढ़ा सकती हैं। इनसे बचें:

  1. भारी वजन उठाना: इससे नसों पर दबाव बढ़ता है।
  2. आगे झुकने वाले आसन: जैसे कि उत्तानासन, इससे बचें।
  3. तेज दौड़ना: इससे झटका लग सकता है।
  4. लंबे समय तक बैठना: हर 30 मिनट में उठकर टहलें।

निष्कर्ष:कमर की नस दबने पर कौन से योगासन करें? – एक संपूर्ण गाइड

कमर की नस दबना एक दर्दनाक स्थिति है, लेकिन योग, सही आहार, और स्वस्थ जीवनशैली अपनाकर इसे नियंत्रित किया जा सकता है। भुजंगासन, सेतु बंधासन, और पवनमुक्तासन जैसे योगासन नसों पर दबाव को कम करने और रीढ़ को मजबूत करने में प्रभावी हैं। नियमित अभ्यास और सावधानी के साथ आप इस समस्या से राहत पा सकते हैं। यदि दर्द गंभीर हो या लंबे समय तक बना रहे, तो तुरंत डॉक्टर या फिजियोथेरेपिस्ट से सलाह लें।

नोट: योग को धीरे-धीरे और सही तरीके से करें। यदि कोई असुविधा हो, तो विशेषज्ञ की सलाह लें।

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